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सबसे बड़ा रोग है क्या कहेंगे लोग

दोस्तों यह बात बिल्कुल सत्य है कि हम ज्यादातर अपनी जिंदगी में यही सोचते रहते हैं कि लोग क्या सोचेंगे हमारे बारे में, ज्यादा समय हम यही सोच कर बिता देते हैं जिसका कोई मतलब नहीं होता। आप कितना भी अच्छा क्यों ना कर लो आप सभी लोगों को खुश नहीं रख सकते lइंसान तो भगवान से भी दुखी है फिर आप सब को खुश कैसे रख सकते हो।  अगर आप यही सोचते हैं तो आपको यह डर खत्म करना है कि बाकी लोग आपके बारे में क्या सोचते हैं, क्या बोलते हैं lउनके लिए आपको खुद को खुश करना पड़ेगा जब आप स्वयं खुश रहोगी, जब आप अपने कर्मों से खुश रहोगे फिर आपको कोई मतलब नहीं रह जाएगा कि लोग आपके बारे में क्या सोचते हैं और ना ही आपको उनकी सोच की जरूरत होनी चाहिए यह आपकी जिंदगी है आपका संघर्ष है तो फैसला भी आपको ही करना चाहिए। 



दोस्तों LifeWithAshish में आपका स्वागत है , आज  मै एक नए आलेख पर लिखने जा रहा हूँ, जिसका नाम -

"सबसे बड़ा रोग है क्या कहेंगे लोग"।

Welcome to सबसे बड़ा रोग है क्या कहेंगे लोग


दोस्तों आपने कई बार ऐसा महसूस किया होगा कि कोई भी काम शुरू करने से पहले मन में यह विचार आ जाता है कि लोग क्या कहेंगे, अगर हम बिना नहाए एक दिन ऑफिस  चले गये तो, हम तो चला लेंगे,
मगर डर तो असल मे इस बात का है कि  लोग क्या कहेंगे।

 ये काम मत करना, लोग क्या कहेंगे?  

और lifestyle क्या बना रखी है तुंमने?

Boyfriend? सवा सत्यानाश! इज्ज़त तो गई आपकी!
खाना नहीं बनाती? उफ, शादी कौन भला मानस करेगा?
जो करो जैसे करो, बस ये याद रखना की चार लोग क्या कहेंगे?

उनके साथ मत हँसना-बोलना, लोग क्या कहेंगे?

पार्टी नहीं दी, लोग क्या कहेंगे?

लिफ़ाफ़े में सिर्फ १०० रुपैये दिए, लोग क्या कहेंगे?

और फिर उनके अनगिनत पर्सनल सवाल
इतनी उम्र हो गयी, शादी कब करोगी?
शादी को इतनी उम्र हो गयी, बच्चे कब करोगी?
एक बच्चे की उम्र हो चली, दूसरा कब करोगी?
दो बेटोयो की उम्र हो गयी, अब एक बेटा कब करोगी?

सुबह उठते ही रेस शुरू हो जाती है, वो भी अपने ही घर मे,
नहाएगा पहले कौन, ऑफीस के लिये पेह्ले कौन निकलेगा, क्यूकी सबको सब करना होता है बस एक ही पल भर मे.
 सच तो ये है उम्र दर उम्र गुजरती गयी, हर दिन इस डर में निकला कि वो क्या कहेंगे

सब अपनी ज़िन्दगी में उलझे हैं, परेशान हैं। उनसे उबरने की कोशिश में लगे पड़े हैं…सुबह से रात तक…दिन से साल तक। ऐसे में क्या सोचेंगे वो आपके बारे में! उन्हें फुर्सत कहाँ? पर ये ‘लोग’ हैं कौन? ज़रा सोचो, ज़रा रुको और बात करो अपने आप से। 

सबसे बड़ी विडंवना यह है कि हम कोई काम शुरू करने से पहले ही इस असमंजस या दुविधा में पड़ जाते हैं कि हमारे काम की दशा, दिशा, मार्ग, सफलता या असफलता पर लोगों की प्रतिक्रिया क्या होगी. ऐसे में तयशुदा लक्ष्य व उसकी प्राप्ति के मार्ग से भटक जाना हमारी नियति बन जाती है

यदि आप दूसरों की राय से अपनी प्राथमिकताएँ तय करते हैं तो आपका अपना अस्तित्व व व्यक्तित्व दोनों खतरे में पड़ सकते हैं. साध्य व साधन दोनों चुनने के लिये आप खुद सक्षम व स्वतंत्र हैं, फिर क्यों दूसरों की बात सुनकर स्वावलंबी से परावलंबी बनना चाहते हैं. दूसरों की सुनते-सुनते तो एक दिन आप तंग आ जाएंगे और निर्धारित मार्ग से भटक जाएंगे और जब तक यह बात आपकी समझ में आएंगी तब तक बहुत देर हो चुकी होगी. इस सम्बन्ध में एक बहुत ही रोचक कहानी है कि दूसरों की सुननेवाले लोगों की और उसे नहीं सुननेवाले लोगों की क्या दशा होती है.

घरवाले कहते हैं ऐसा मत करो, दोस्त बोलते हैं वैसा मत करो और इनके ऐसा कहने की वजह है कि 'लोग क्या कहेंगे या क्या सोचेंगे'? कई बार हम करना कुछ चाहते हैं, लेकिन कर कुछ बैठते हैं सिर्फ़ ये सोच कर कि आखिर लोग क्या कहेंगे? छोटे कपड़े मत पहनों, ड्रिंक करती हुई फ़ोटो सोशल मीडिया पर मत डालो, क्योंकि ऐसी तमाम चीज़ें करने से पहले हमारे सामने एक ही सवाल रखा जाता, यार रहने दे न पता नहीं लोग क्या कहेंगे. अब तक लोगों के बारे में तो बहुत सोच लिया, लेकिन क्या कभी ख़ुद से ये पूछा है कि जिन लोगों के बारे में हम जितना सोचते हैं, उन्हें हमारी कोई फ़िक्र है भी या नहीं. आखिर कब तक लोगों के बारे में सोच कर हम अपनी इच्छाओं का दम घोटते रहेंगे. 

अरे! बस करो बस!

जिन्दगी में आप जो करना चाहते है, वो जरूर कीजिये, ये मत सोचिये कि लोग क्या कहेंगे। क्योंकि लोग तो तब भी कुछ कहते है, जब आप कुछ नहीं करते।

कभी सोचा है? कौन हैं वो लोग जिनके कुछ बोलने से हम इतना डरते हैं? लोग क्या कहेंगे, ये सोच-सोचकर जीवन भर हम अपनी इच्छाओं का गला घोंटते हैं।

बड़े महंगे थे वो ख्वाब जो  हमने बनाए , आज वो  मुफ्त में कही कहीं  बिक गए|

एक दायरा बना के जिन्दगी का उसी में खप गये |

हमेशा परवाह यह थी, कि ये सब आगे लोग क्या कहेंगे ||

जाना कहीं और था , मंजिल कोई और थी , और अब  किसी ओर ही गली मुड़ गए,

जब  जिंदगी में  उठने का समय आया तो, फिर से हम  करवट बदल कर सो गयें ।

हमेशा दिल में  ये डर चल रहा था कि चार लोग क्या कहेंगे।

दुबारा हिम्मत जुटा कर मन के तहखाने में, ख्वाब नए सजाने  हम फिर गए,

पर उसे भी तमाशा बना के वो एक नयी  बात हँसके चले गए।

फिर न जाने वो डर दुनिया का ख्याल आया ,चार लोग क्या कहेंगे।।

पूछा एक दिन खुद से ,कौन हैं ये सब चार  लोग जो हमारी जिन्दगी का इतना सस्ता भाव लगा गये ,

हमारे अरमानों के जलते अलाव को,  महज राख वो बता के उनको दफना गए।

फिर अंत अंत में ध्यान आया कि छोडो ,चार लोग क्या कहेंगे।। 

मतलब हम सत्य और असत्य,
सकारात्मक और नकारात्मक
अपनी सुविधा और लाभ के अनुसार तय करते हे।

99% प्रतिशत लोग भगवान को सिर्फ लाभ और डर की वजह से पूजते है.
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.और इस बात से वह 99% प्रतिशत लोग भी सहमत होंगे मगर शेअर नही करेंगे क्योंकी .....
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एक ही डर "लोग क्या कहेंगे".


लोग क्या सोचेंगे ? ? ?

उपाय :

Welcome to सबसे बड़ा रोग है क्या कहेंगे लोग
दोस्तों ऐसे विषयों पर समाज के पुराने ढर्रे  पैटर्न को बदलना काफी मुश्किल लगने लगता है। लेकिन अगर हम सब मिलकर कोशिश करें तो ऐसा भी नहीं कि यह हो न सके। 

अपने अंदर से डर  दूर करना :

मेरा मानना है कि इसे सुधारने का पहला कदम यह होगा कि दूसरे हमारे बारे में क्या सोचते हैं, यह सोचने की बजाय हम अपने बारे में सोचें। फिलहाल 'हम अपने बारे में क्या सोचते हैं' की बजाय इस बात से अधिक चिंतित रहते हैं कि दूसरा हमारे बारे में क्या सोचता है और यही सबसे बुरी बात है।

दोस्तों  रखिए कि आप की जीत का सहारा  लोगे तो  अपने सर बंधवाने में तनिक भी देर नहीं करेंगे पर अपनी हार के लिए केवल आप ही उत्तरदायी होंगे इसलिए अपने जीवन से ,अपने मन से इस डर को निकाल फेकिये कि लोग क्या कहेंगे ?

हस्तक्षेप की सीमा :

दोस्तों आप अपने जीवन में लोगों के हस्तक्षेप की एक सीमा निर्धारित करिये  , जीवन आपका है , लक्ष्य आपका है तो निर्णय भी आपका ही होना चाहिए। 

आपके भविष्य की चिंता आपके घर -परिवार , मित्रों और आप से ज्यादा किसी को नहीं हो सकती।

जरा सोच कर देखिए कि जब लोगों की बारी आती है तो क्या वह अपने जीवन में आप का हस्तक्षेप स्वीकार करते हैं ?नहीं ना ,तो आप क्यो ?

हमेशा चिंता नहीं चिंतन करें  : 

दोस्तों आपको यह बात समझना बहुत  ज़रूरी है कि, आप क्यों इन लोगो की इतनी  परवाह क्यों करते हैं कि लोग आपके बारे में क्या बोलते हैं या सोचते हैं। बचपन से ही हमारा पालन-पोषण ऐसे समाज में हुआ है, जिसके नियम हमारे नाते रिश्तेदार निर्धारित करते हैं। हमें डर रहता है कि अगर हमारा पहनावा और रहन-सहन सामाजिक "मानदंडों" के अनुरूप नहीं है, तो हमें नापसंद कर दिया जाएगा। यह और कुछ नहीं बल्कि सामाजिक अनुकूलन का एक रूप है, जिससे अब हमें खुद को आजाद करने की ज़रूरत है।

समझें कि 'लोग क्या कहेंगे' यह आपके Controll  से बाहर है :

दोस्तों आप जिंदगी में  जो भी करें, लेकिन यह जान लें कि दूसरों के विचारों पर आपका कोई कंट्रोल नहीं हो सकता है। अगर आप यह सोचते हैं कि आप अपने बारे में लोगों की राय को बना या बिगाड़ सकते हैं, तो यह आपकी गलतफहमी है। वास्तव में दूसरे लोग आपके बारे में क्या सोचते हैं, यह आपके नियन्त्रर  से बाहर है। और आप जो भी करते हैं, यह जानना किसी और का काम नहीं है और न ही किसी को इससे कोई मतलब होना चाहिए। तो इसे समझें और स्वीकार करें।

खुद से प्यार करने की आदत डालें :

दोस्तों जितना अधिक आप अपने आप को प्यार करते हैं और अपने निर्णय को स्वीकार करते हैं, तो उतनी ही आपको दूसरों की जरूरत कम पड़ेगी। 

आप जितना अधिक आत्म-प्रेम और आत्म-स्वीकृति महसूस करते हैं, तो आप देखेंगे कि आप उससे भी अधिक आत्म-प्रेमी और आत्मनिर्भर बन रहे हैं। दयालु होना और अपनी गलतियों के लिए अपने आप को क्षमा करना ज़रूरी है।

दोस्तों कभी आपने जिंदगी में कभी सोचा है कि, अगर आप लोगो (चार......  लोग किया कहेंगे )  की फ़िक्र करना छोड़ दें, तो आपकी ज़िंदगी में क्या-क्या बदलाव आ सकते हैं. अगर अब तक नहीं सोचा, तो अब ज़रा अच्छे बदलावों पर एक नज़र डाल लो...

1 . कोई भी फ़ैसला लेने से पहले ज़्यादा सोचना नहीं पड़ेगा.

2 . ख़ुद की ज़िंदगी ज़्यादा बेहतर तरीके से जीएंगे.

3  ख़ुद को Explore करने का मौका मिलेगा. 

4 . आप बिना किसी की टेंशन के काम करेंगे. 

5. लाइफ़ को अपनी शर्तों पर जी पाएंगे. 

6 . आपकी इजाज़त के बिना कोई भी इंसान आपको बुरा फ़ील नहीं करा सकता. 

7 . पहले से ज़्यादा आत्मनिर्भर हो जाएंगे. 

8 . आपको क्या करना चाहिए, इसके लिए कोई आपको रोकने वाला नहीं होगा. 

9  . आपको अपनी शक्तियों का अंदाज़ा हो जाएगा. 

10  . क्या सही और क्या ग़लत, इसके लिए ज़िम्मेदार ख़ुद होंगे.

निष्कर्ष : दोस्तों ज़िंदगी एक ही बार मिलती है यार, इसीलिए इसे दूसरों की फ़िक्र में बर्बाद मत करो. आपको इसे जैसे जीना है वैसे जीओ, लोगों का क्या है उनका काम है कहना, कहने दो. खुल कर ज़िन्दगी जियो क्योंकि ज़िन्दगी न मिलेगी दोबारा!

ये सच है दुनिया का तो काम ही है कहना। अच्छा करोगे तो कहेंगे , बुरा करोगे तो फिर भी कहेंगे। ये सब अब मत सोचो।  

दोस्तों  ऊपर देखकर चलोगे तो कहेंगे… अभिमानी हो गए।
आंखे बंद कर दोगे तो कहेंगे कि… ध्यान का नाटक कर रहा है।
चारो ओर देखोगे तो कहेंगे कि… निगाह का ठिकाना नहीं। निगाह घूमती ही रहती है।
और परेशान होकर आंख फोड़ लोगे तो यही दुनिया कहेगी कि… किया हुआ भोगना ही पड़ता है।

20  साल की उम्र तक हमें परवाह नहीँ होती कि "लोग क्या सोचेंगे ? ? "

40 साल की उम्र तक इसी डर में जीते हैं कि " लोग क्या सोचेंगे ! ! "

60 साल के बाद पता चलता है कि " हमारे बारे में कोई सोच ही नहीँ रहा था ! ! !


नीचे इस फोटो को देखो , अपने आप ही समझ जाओगे , ऐसे ही हमारे जीवन में भी होता है।  जो जितनी जल्दी समझ जाएगा वो उतनी जल्दी सफल हो जाएगा।


Welcome to सबसे बड़ा रोग है क्या कहेंगे लोग

इसी बात के साथ मैं आपके हंसी-खुशी, स्वतंत्रता, आत्म-पुष्टि और निडर प्रेम से भरे जीवन की कामना करता  हूं। 
हम इस पृथ्वी पर बहुत कम समय के लिए हैं। और इसीलिए यह जरूर तय करें कि आपका जीवन महज एक समझौता बनकर न रह जाए। "कुछ तो लोग लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना ... छोड़ो, बेकार की बातों में कहीं बीत ना जाए रैना!"

 दोस्तों आपसे अपील है कि , मेरे इस विषय पर सही पर सोचियेगा ,जरूर अगले ब्लॉग में फिर मिलेंगे तब तक के लिए हंसते -रहिए ,हँसते – रहिए ,जीवन अनमोल है मुस्कुराते रहिए ! 

दोस्तों उम्मीद करता हूँ कि यह article आपको पसंद आया होगा , please कमेंट के द्वारा feedback जरूर दे। आपके किसी भी प्रश्न एवं सुझाओं का स्वागत है , अगर आप मेरे आर्टिकल को पसन्द करते है तो जरूर Follow करे ताकि आपको तुरंत मेरे आर्टिकल आपको मिल जाए। 

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