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Showing posts from March, 2021

व्यस्त रहो मस्त रहो

"ओफ्फो बिस्तर की चादर कितनी बार भी सही करो फिर सलवट पड़ जाती"या "सोफे के कवर कुछ सेट से नहीं लग रहे"ये माथे पर बाल की जो लट है कुछ जम सी नहीं रही" ये उदाहरण है हर चीज़ को परफेक्शन से देखने के,ये चेहरे मोहरे से लेकर बैंक बैलेंस तक में हो सकता है। लोगो के दिमाग में हर काम का एक परफेक्शन लेवल होता है।किसी को कमरे का फर्श चमकता चाहिए किसी को दीवार और छत भी दागों से रहित।जब कोई अपने परफेक्शन लेवल तक पहुँच ना पाए और उसे पाना एकमात्र उद्देश्य बना लेता है तो जन्म लेते है बहुत से डिसऑर्डर। पहला व्यक्ति खुद को परफेक्शनिस्ट बनाने में लगा रहता है।पढ़ने में अव्वल तो मुझे डांस भी आना चाहिए।ऑफिस में टॉप पर तो मुझे घर में भी 10 आउट ऑफ 10 चाहिए।ये लोग खुद को ही मोटीवेट करते है औऱ अचीव न कर पाने पर खुद ही निराश हो जाते है। दूसरा व्यक्ति खुद के साथ अपने खास रिश्तों से परफेक्शन की उम्मीद रखता है,ऐसे लोग अपने खास लोगों में या तो हंसी के पात्र बनते है या नफरत के क्योंकि ये हर बात, हर चीज़ में कमी निकालते हैं। तीसरा ये सबसे खतरनाक केटेगरी होती है,दूसरे शब्दों में जिन्हें हम साइको कहत

गलतफहमी सुविचार

दोस्तों घर के रिश्ते तो स्वाभाविक ही बनते है लेकिन बाहर के रिश्ते सिर्फ आपसी समझदारी से ही बनते है। लेकिन जब रिश्ते टूटते है तो उसके पीछे बहुत से कारण होते है।  इन सभी कारणों में सबसे बड़ा कारण जो है वो है ग़लतफहमी जिसे अंग्रेजी में मिसअंडरस्टैंडिंग (misunderstanding) कहा जाता है।  शायद अब समझ रहे होंगे कि इस लेख में क्या कहने का प्रयास किया गया है।  यदि नहीं समझे तो हम आपको आगे बताते है।  आदि युग के समय से ही मानव एक सामाजिक प्राणी रहा है।  भारतीय मूल्यों और संस्कृति के अनुसार मानव जीवन में रिश्तों की बहुत ही बड़ी महत्ता है।  रिश्ता कोई भी हो उसे निभाने की परम्परा हमें अपने इतिहास से भी बखूबी मिलती है।  कभी कभी तो हमारे जीवन में कब रिश्ते बन जाते है जुड़, जाते है, हमे खुद भी पता नहीं चल पाता। रिश्तों नातों को समझाने के लिए न जाने ही लेख लिखे गए, अनेको ग्रंथो की रचना भी हुई। रिश्तों की परिभाषा पर दूरदर्शन और रेडियो पर अनगिनत कार्यक्रम बनाये गए और फिल्म भी बनाये गयी।  इन सब में जो रिश्तों को बनते हुए दिखाया गया तो रिश्तों को बिगड़ते हुए दिखाया गया।  दोस्तों ग़लतफ़हमियों के कारण रिश्तों में दरा

खुद को किसी से कम मत समझो

दोस्तों जीवन में अनेक घटनाये घटित होती है जो ज्यादातर असफलता या सफलता के बीच की होती है और अक्सर असफलता मिलने पर लोग खुद को दुसरो के मुकाबले कम आकने लगते है यानी वे अपने ही नजर में खुद की Value को कम समझते है और फिर ऐसी स्थिति में दिमाग Negative Thinking की ओर जाने लगता है लेकिन क्या आपने सोचा है जिस इन्सान को ईश्वर ने बनाया है उसकी Value भला कैसे कम हो सकती है एक सफलता या असफलता से पूरे जीवन के पैमाने तो नही लिखे जा सकते है तो चलिए इसी सोच पर एक छोटी सी अच्छी लेख यहाँ लिखने जा रहा हूँ। "खुद को किसी से कम मत समझो"  आपको गर्ल फ्रेंड नहीं मिली है और वही गर्ल फ्रेंड किसी दूसरे को मिल गयी हो जो आपसे अच्छा न हो, आपसे गैर गुजरा है , तब हमारे अंदर Inferiority Complex की भावना उत्पन्न हो जाती है। एक दूसरे से तुलना करना ही Inferiority Complex है। Inferiority Complex क्या है : हीन भावना  दोस्तों जब हम किसी को देखते हैं जो हमसे बड़ा हो , look wise better, money wise better , आदि हो , तब हमे जलन , insecurity की feeling आ जाती है। तुलना करना भी दो type के होते हैं।

अपने अंदर के डर (Fear ) से कैसे जीतें

दोस्तों डर मात्र एक ‘विचार’ है। ‘ऐसा हो गया तो… कहीं ऐसा न हो जाए… कहीं मैं मर न जाऊँ… मैं इंटरव्यू में फेल हो गया तो… पेपर लिखते वक्त मुझे जवाब याद नहीं आए तो…’ डर के एक विचार से इंसान ऐसा चित्र बना डालता है, जहाँ वह इस एक विचार को फलते-फुलते देखता है और  कोई अपने बीमार रिश्तेदार से मिलने अस्पताल में चला गया। रिश्तेदार की बीमारी के लक्षण जान लिए और वह सोचने लगा कि ‘ये लक्षण तो मुझमें भी हैं। इसका अर्थ मुझे भी यह बीमारी है क्या?’ यह विचार आते ही वह डर गया। ऐसे में विचारों के प्रति अपनी सजगता बढ़ाते रहना और डर के विचारों का अच्छे तरीके से इस्तेमाल करना, यही डर पर शिकस्त पाने का उत्तम तरीका है। नमस्कार दोस्तों LifeWithAshish में आपका  स्वागत है , आपका भरपूर सहयोग मिल रहा है इसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद। आज मै एक नए टॉपिक पर लिखने जा रहा हूँ , जिसका नाम है   " अपने अंदर के डर (Fear ) से कैसे  जीतें " दोस्तों अगर आपसे पूछा जाए कि आप लोगो के अंदर कौन कौन से है, तो अधिकतर लोग हर type के डर  बताने लगेंगे , इनमे से कुछ मै आपको बता रहा हूँ , डर दो type के होते है , psychologica