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व्यस्त रहो मस्त रहो


"ओफ्फो बिस्तर की चादर कितनी बार भी सही करो फिर सलवट पड़ जाती"या "सोफे के कवर कुछ सेट से नहीं लग रहे"ये माथे पर बाल की जो लट है कुछ जम सी नहीं रही" ये उदाहरण है हर चीज़ को परफेक्शन से देखने के,ये चेहरे मोहरे से लेकर बैंक बैलेंस तक में हो सकता है।

लोगो के दिमाग में हर काम का एक परफेक्शन लेवल होता है।किसी को कमरे का फर्श चमकता चाहिए किसी को दीवार और छत भी दागों से रहित।जब कोई अपने परफेक्शन लेवल तक पहुँच ना पाए और उसे पाना एकमात्र उद्देश्य बना लेता है तो जन्म लेते है बहुत से डिसऑर्डर।

Welcome to व्यस्त रहो मस्त रहो

पहला व्यक्ति खुद को परफेक्शनिस्ट बनाने में लगा रहता है।पढ़ने में अव्वल तो मुझे डांस भी आना चाहिए।ऑफिस में टॉप पर तो मुझे घर में भी 10 आउट ऑफ 10 चाहिए।ये लोग खुद को ही मोटीवेट करते है औऱ अचीव न कर पाने पर खुद ही निराश हो जाते है।
दूसरा व्यक्ति खुद के साथ अपने खास रिश्तों से परफेक्शन की उम्मीद रखता है,ऐसे लोग अपने खास लोगों में या तो हंसी के पात्र बनते है या नफरत के क्योंकि ये हर बात, हर चीज़ में कमी निकालते हैं।
तीसरा ये सबसे खतरनाक केटेगरी होती है,दूसरे शब्दों में जिन्हें हम साइको कहते है।ये लोग माता पिता से लेकर अपनी सोसाइटी,शहर,यहाँ तक की पालतू जानवर से भी परफेक्शन की उम्मीद रखते हैं।ये खुद के साथ-साथ दूसरों को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं।

अब एक चीज़ याद रखिये परफेक्ट कोई नहीं होता।भगवान भी सम्पूर्ण कलाओं के साथ अवतरित नहीं हुए।कुछ चीज़ें लाइफ में,मन में, आत्मा में अच्छे से बैठा लीजिये|

थोड़ा माइंड को रिलैक्स रखिये,काम अगर आधा घंटा लेट होगा तो कौनसा कटरीना तूफान आ जायेगा|
अगर खिलौने फैले हैं,बाल सही से नहीं बंधे,आज दुप्पटा मैचिंग नहीं है,मार्क्स कुछ खास नहीं आये,फ्रिज इस हफ्ते साफ नहीं किया, त्यौहार पर नई ड्रेस नहीं ली,फेस पैक सोचा था लग नही पाया,छत पर जाले लगे है,डांस आता हैं पर ढोलक नहीं आती,डिग्री है पर अलग अलग खाने की रेसिपी नहीं आती,कपड़े अलमारी में सही से नहीं लगे, और भी बहुत सी छोटी-छोटी चीजें जो सोची पर हो नहीं पाती।

तो कोई नहीं यार चिल मारो रिलैक्स करो कौन ट्रॉफी देने आ रहा है अगर सब काम परफेक्ट कर भी लिए तो।जितना होता है करो नही होता छोड़ दो,पर ये भी कर लूं वो भी कर लूं इस चक्कर मे अपने मन औऱ आत्मा को कष्ट मत दो |अगर चीजें याद नहीं रहती तो सिरहाने एक डायरी और पेन रखो जो याद आये फटाक से लिख लो। उससे बेटर है फ़ोन हमेशा हाथ में रहता है उसमें नोट कर लो।

मोटापा, छोटा कद,सांवला रंग,नाक थोड़ी मोटी, आँख थोड़ी छोटी आदि अब इतने मैटर नहीं करते।आपके आस पास प्यार करने वाले लोग है उससे बेस्ट कुछ नहीं दुनिया में। हमारा शरीर जैसे चाहे रखें बस हेल्थ खराब नहीं होनी चाहिए एक बात याद रखें दुनिया में किसी के पास फालतू टाइम नहीं,लोग बड़ी-बड़ी बातें भूल जाते हैं आप क्या चीज़ हो।खुद को खुद के नजरिये से देखो दूसरों के नहीं।

एक फंडा बनायो मस्त रहो व्यस्त रहो। क्योंकि

1. चालीस साल की अवस्था में “उच्च शिक्षित” और “अल्प शिक्षित” एक जैसे ही होते हैं।

2. पचास साल की अवस्था में "रूप" और "कुरूप" एक जैसे ही होते हैं। (आप कितने ही सुन्दर क्यों न हों झुर्रियां, आँखों के नीचे के डार्क सर्कल छुपाये नहीं छुपते)

3. साठ साल की अवस्था में "उच्च पद" और "निम्न पद" एक जैसे ही होते हैं।(चपरासी भी अधिकारी के सेवा निवृत्त होने के बाद उनकी तरफ़ देखने से कतराता है)

4. सत्तर साल की अवस्था में "बड़ा घर" और "छोटा घर" एक जैसे ही होते हैं। (घुटनों का दर्द और हड्डियों का गलना आपको बैठे रहने पर मजबूर कर देता है, आप छोटी जगह में भी गुज़ारा कर सकते हैं)

5. अस्सी साल की अवस्था में आपके पास धन का "होना" या "ना होना" एक जैसे ही होते हैं। ( अगर आप खर्च करना भी चाहें, तो आपको नहीं पता कि कहाँ खर्च करना है)

6. नब्बे साल की अवस्था में "सोना" और "जागना" एक जैसे ही होते हैं। (जागने के बावजूद भी आपको नहीं पता कि क्या करना है).

जीवन को सामान्य रुप में ही लें क्योंकि जीवन में रहस्य नहीं हैं जिन्हें आप सुलझाते फिरें।

आगे चल कर एक दिन हम सब की यही स्थिति होनी है इसलिए चिंता, टेंशन छोड़ कर मस्त रहें स्वस्थ रहें।

“चैन से जीने के लिए चार रोटी और दो कपड़े काफ़ी हैं “।
“पर ,बेचैनी से जीने के लिए चार मोटर, दो बंगले और तीन प्लॉट भी कम हैं !!”

“आदमी सुनता है मन भर ,,
सुनने के बाद प्रवचन देता है टन भर,,”
और खुद ग्रहण नही करता कण भर ।।”

यही जीवन है और इसकी सच्चाई भी.

आदमी भी क्या अनोखा जीव होता है,
खुद बनाकर उलझनो का जाल खुद को फसाना है।
छोड़कर कभी अन्न -जल कभी नीद,
गले लगाता है केवल उलझने ही उलझने ।
कर्म करो बिना फल इच्छा गीता का सन्देश,
अपनाना ही पड़ेगा जीवन मे अब।
व्यस्त कर अपने को इतना कि कभी,
ध्यान आये ना ढीठ ये उलझने।
बांट दो खुशियां सभी दिल खोलकर,
क्या पता तेरा अन्दाज उसको भा जाये ।
मस्त रहो ,व्यस्त रहो, खुश रहो
और दूसरो को खुशियां बांटते चलो ।

इंसान अपनी इच्छाओं का त्याग करता है,
पूरी ज़िंदगी नौकरी, व्यापार और धन कमाने में बिता देता है❗

*60 वर्ष की उम्र में जब वो सेवानिवृत्त होता है, तो उसे उसका जो फंड मिलता है, या बैंक बैलेंस होता है, तो उसे भोगने की क्षमता खो चुका होता है❗*

तब तक जनरेशन बदल चुकी होती है,
परिवार को चलाने वाले बच्चे आ जाते हैं❗

क्या इन बच्चों को इस बात का अन्दाजा लग पायेगा कि इस फंड, इस बैंक बैलेंस के लिये : -

*कितनी इच्छायें मरी होंगी❓
*कितनी तकलीफें मिली होंगी❓
*कितनें सपनें अधूरे रहे होंगे❓

क्या फायदा ऐसे फंड का, बैंक बैलेंस का, जिसे पाने के लिये पूरी ज़िंदगी लग जाये और मानव उसका
भोग खुद न कर सके❗

*इस धरती पर कोई ऐसा अमीर अभी तक पैदा नहीं हुआ, जो बीते हुए समय को खरीद सके❗

इसलिए हर पल को खुश होकर जियो, व्यस्त रहो,
पर साथ में मस्त रहो, सदा स्वस्थ रहो❗

मौज लो, रोज लो❗
नहीं मिले तो खोज लो‼

BUSY पर BE-EASY भी रहो।

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