दोस्तों आप देखते हैं ... इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कहाँ से आए हैं, आप कहाँ पैदा हुए हैं, आपकी त्वचा का रंग, या आप कितने पैसे में पैदा हुए हैं। यह मायने रखता है कि आप अपने आप को कहां रखने का फैसला करते हैं, जिन लोगों के साथ आप खुद रहते हैं और आप कैसे जीना चुनते हैं। आप अपने पूरे जीवन यह सोचकर जी सकते हैं कि आप एक सस्ते पत्थर थे। हो सकता है कि आप अपना पूरा जीवन ऐसे लोगों से घिरे रहे जो आपके मूल्य को जानते नहीं थे। लेकिन हर किसी के अंदर एक हीरा होता है। और हम अपने आप को उन लोगों से घेरने का विकल्प चुन सकते हैं जो हमारे मूल्य को देखते हैं और हमारे अंदर के हीरे को देखते हैं। हम अपने आप को एक बाजार में रखना चुन सकते हैं या अपने आप को एक कीमती पत्थर की दुकान में रख सकते हैं। और आप अन्य लोगों में मूल्य देखने के लिए भी चुन सकते हैं। आप अन्य लोगों को उनके अंदर का हीरा देखने में मदद कर सकते हैं। अपने आसपास के लोगों को बुद्धिमानी से चुनें, जो आपके जीवन में बदलाव ला सकते हैं।
जीवन की कीमत वो होते हैं जो हमरे मन के चलन को संतुलन लाने में सहयोग दे।
मन जो बहुत ही तर्कवान होने के उत्तेजना से हमारे भावों को कभी पीछे ढकेल देता है और अपनी ही मर्ज़ी से कभी भावों से राई का पहाड़ बना देता है।
यानि हम जीवन में बच्चों के झूले की भांति कभी ऊपर जाते हैं और कभी नीचे कभी तर्क की अति से और कभी भाव की अति से और अंत में जीवन मूल्य से खिसक जाते हैं जिसमे हमारे अहम की जीत हो जाती है और हम अपार समय या कभी जीवन भी नष्ट कर देते हैं ।
दोस्तों जीवन की कीमत क्या होते हैं मैं बहुत संक्षिप्त में बताता हूँ,
(1) जो एक व्यक्ति यानि स्वयं में लागू होता है वो तो प्रेम ही है, ये हमें तब समझ आता है जब हम स्वयं से प्रेम करने की सीख लेते हैं। ये प्रत्येक एक इकाई में लागु होता है यानि कि यदि हम एक टीम के मेंबर हैं और दूसरी तीन से लड़ना है तो टीम को हम इकाई के रूप में देखें तो इस टीम को बांधे रखने के लिए बस प्रेम ही काफी होता है।
(2) जब इकाई एक से दो हो जाती है तब प्रेम काफी नहीं होता और आदर का आगमन होता है। यानि कि दो इकाईओं के बीच यदि आदर बनाये रखा जाये तो प्रेम भी अपनी धूरि में टिका रहेगा। यानो दो देशो के बीच यदि आपस में आदर बनाये रखने तो आपस में प्रेम भी भरा रहेगा।
(3) ये सबसे महत्वपूर्ण होता है जो दो से अधिक इकाईओं में काम आता है वो होता हैं नैतिकता. इसका उद्धरण: यदि तीन मित्र है और किसी समय सिर्फ दो आपस में मिलते हैं, इस परिस्तिथि में कोई भी तीसरे कि अनुपस्तिथि में उसकी बुराई नहीं करता, ये बहुत कठिन होता है। ये किसी तीन इकाईओं में लागु होता है यानि कि यदि हम दुनिया में कुशलता और शांति सोंचेऔर सभी में नैतिकता रहे तो आपस में आदर भी रहेगा और प्रेम भी चरम सीमा को होगा। शायद या संभव नहीं इसलिए शांति भी संभव नहीं।
दुनिया को यदि हम भूल भी जाएँ हम अपने जीवन में विभिन स्थानों में एक इकाई, दो इकाई और दो से अधिक इकाई में रहते हैं जहाँ यदि बताये मूल्य का पालन करें तो स्वयं तो हम अपने जीवन में सफलता प्राप्त करेंगे शांत मन के साथ और अपने निकट सम्बन्धिओं में भी शांति की बौछार ही करेंगें।
दोस्तों जीवन केवल पदार्थ ही नहीं बल्कि इससे कहीं अधिक है। मानवीय जीवन पदार्थ व चेतना दोनों का संयोजन है। यदि मानव केवल पदार्थ होता तो आराम की आवश्यकता ही नहीं थी। क्योंकि पदार्थ को आराम, बेचैनी, सुंदरता, बदसूरती, खुशी व दुख का अहसास नहीं होता। ऐसा तो केवल उन्हें ही हो सकता है जिनमें चेतना विद्यमान है। परंतु जीवन केवल चेतना ही नहीं है। क्योंकि यदि ऐसा होता तो हमें पानी, भोजन व आराम की आवश्यकता ही महसूस न होती। चेतना अनुभव करती है व स्वयं को मूल्यों द्वारा अभिव्यक्त भी करती है।
जीवन की कीमत वे भावनाएं हैं जिन्हें न तो शब्दों द्वारा व्यक्त किया जा सकता है और न ही बुद्धि द्वारा समझा जा सकता है। आध्यात्मिक पथ का उद्देश्य ऐसा मूल्य आधारित जीवन जीना है जो हमारी चेतना में विद्यमान हैं। इसलिए जीवन को आध्यात्मिक दृष्टिकोण से समझना व पूर्णतया जीवन को जीना अति आवश्यक है। अब सवाल यह उठता है वे मूल्य कौन से हैं। शांति, प्रेम, आनंद, सुंदरता, ज्ञान और पदार्थ व चेतना को समझने की क्षमता ऐसे मूल्य हैं जो जीवन को आनंदमयी बनाते हैं।
दोस्तों जिंदगी कोरा कैनवास है, हम रंग भरेंगे तो चित्र बनेगा--सुंदर या कुरूप--हम पर निर्भर है। जीवन असार व्यतीत हो सकता है यदि कला नहीं सीखी तो। जैसे चकमक पत्थर को रगड़ने से आग पैदा हो जाती है, ऐसे ही जरा भीतर रगड़ को जगाओ, ध्यान की युक्ति सीखो और तुम्हारे भीतर भी ज्योति जल उठे! वरना माटी के दीपक में कहां सार खोजते हो?
जैसे दही को मथ कर तुम दूध से दही बनाते, दही को मथ कर तुम घी बना लेते, ऐसे ही थोड़े-से मंथन की जरूरत है कि तुम्हारे भीतर जीवन का सार, तुम्हारे भीतर जीवन की परम उपलब्धि फलित हो जाये। तुम्हारे भीतर चैतन्य का स्वर्ण-फूल खिले। तुम्हारे भीतर ही छिपा है वह खजाना, जिसे तुम खोजने चले हो। जरा सी ध्यान में डुबकी और वहीं प्रगट हो जायेगी आत्मा, सुनाई पड़ने लगेगा परमात्मा का संगीत--ओंकार। उस अनाहत नाद में सार है, अर्थ है, शांति है, आनंद है। उसके बिना सब व्यर्थ हैं--धन, पद, यश, प्रतिष्ठा, ज्ञान, प्रेम संबंध, नाम--सब निरर्थक हैं। जीवन का सार ‘रेडीमेड’ नहीं है। निर्मित करना होगा। ध्यान की कला सीखनी होगी। समाधि में डूबना होगा। परमात्मा को जानना होगा।
मानव जीवन जैसा है, वह सितार जैसा है। बजाने की विद्या सीखो, निपुण बनो, फिर संगीत रूपी सार उत्पन्न होता है।
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