नमस्कार दोस्तों आपका हमारे blog में स्वागत है। दोस्तों आज हम एक आलेख लिखने जा रहे हैं ,आप उसको बहुत ध्यान से पढ़िए।
दुःख और सुख क्या है?
दोस्तों जो मिल गया वह सुख और जो नहीं मिला वह दुःख।
कहने को सुख और दुःख तीन तरह के मनोभाव है, धन का, तन का, मन का।
परन्तु कभी कभी बुद्धि और अध्यात्म थोड़ी दूर के रिश्तेदार है सुख दुःख के।
मेरे प्यारे दोस्तों अपने देखा ही होगा कि ये दुनिया कभी भी हमारे हिसाब से नहीं चल सकता यही सबसे बड़ा दुःख , जिसकी इच्छा हो वह मिल जाये, प्रेयसी का चेहरा दिख जाये , सबसे बड़ा सुख।
कहने को एक दूसरे के विपरीत मगर ख़ुशी मिल भी जाए तो क्षण भर में बहुत खुश और गम सालो साल तक सालता रहे।
दोस्तों सुख हो सभी के साथ आता है कभी किसी को दुःख पहले और कभी सुख कभी पहले।
अब उनको कौन समझाए की सुख
ढूंढना पड़ता है, दोस्तों सुख अपने पास ही रहता बस अपने अपने नजरिये की बात है।
दोस्तों मान लो कि तुम्हारा बेटा या बेटी खो गए है और खोजने से मिल नहीं रहे बहुत घण्टे से, अब इस समय आपके दिमाग में तरह तरह के प्रश्न चल रहे होंगे, तुम परेशान हो गए हो , तो ये दुःख है मेरे दोस्तों और फिर वो ढूढने से तुम्हें अचानक मिल जाते है, तो ये सुख है। दुःख जितना गहरा, सुख उतना ही ऊँचा मेरे दोस्तों।
दोस्तों उम्मीदों का पूरा होना ही सुख है और उम्मीदों का पूरा न होना दुख है।
मन मे उत्पन्न इक्षाएँ जब पूरी होती है तो सुख मिलता है,
इसीलिए गीता में सच ही कहा गया गया है- कर्म करो , फल की इक्षा ना रखो। यह जो इक्षाएँ, उम्मीदे ही सुख- दुख का कारण है।
दोस्तों
कभी-कभी मुझे लगता है कि सब खो गया है और कभी-कभी मुझे लगता है जैसे मैंने
दुनिया को जीत लिया है। कई बार हँसी मेरे नियंत्रण में नहीं होती है। जीवन में दुख और
सुख एक सिक्के के दो पहलु हैं। ये दोनों साथ ही चलते हैं। इन्हें एक-दूसरे
से पृथक करना संभव नहीं है।
दुख
और सुख रात-दिन की तरह होते हैं। एक के बिना दूसरे का कोई अस्तित्व नहीं
है। हम केवल सुख को तो अपने जीवन में शामिल करने की दुआ मांग लेते हैं
परंतु कभी दुख नहीं चाहते। हम यह भूल जाते हैं कि जो सवेरा घने अंधेरे के
बाद होता है, वह साधारण से ज्यादा अच्छा प्रतीत होता है। जीवन में हमें सुख
मिलने पर तो प्रसन्नता होती है किंतु दुख मिलने पर हमें शोक होता है। यही
जीवन चक्र है। यदि ऐसा नहीं होगा तो हमें कभी खुशी का महत्त्व नहीं पता
चलेगा। यदि जीवन में कभी कोई दुख नहीं मिलेगा तो व्यक्ति को खुशी के लिए
कोई संघर्ष भी नहीं करना होगा। संघर्षों से मिली खुशी हमें सदैव ज्यादा
प्रसन्नता देती है जबकि हमें यदि बिना संघर्ष सबकुछ मिल जाएगा तो जीवन
उदासीन लगने लगता है।
इस दुनिया में एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं है जो
दुख से बच सके। दुख हमारे जीवन को जिस तरह से आगे ले जाता है, उसकी मूलभूत
विशेषता है- घृणा। दुख तब होता है जब चीजें बदल जाती हैं - एक रिश्ता
समाप्त हो जाता है, किसी की मृत्यु हो जाती है, हमें नौकरी से निकाल दिया
जाता है, बीमार होने पर, एक दोस्त को शारीरिक रूप से चोट लगी है, एक आपदा
होती है।
दुख
दो प्रकार के होते हैं शारीरिक और मानसिक। शारीरिक दुख में तो हमें बाहरी
चोट लगती है लेकिन मानसिक दुख में हमारी मानसिकता पर प्रभाव पड़ता है जो कि
शारीरिक दुख से भी बड़ा होता है। हमें ऐसे दुख से उबरने के लिए अपनी
मानसिकता को स्थिर करना होगा।
दोस्तों हम सभी को सुख नहीं दे सकते है लेकिन अगर सुख नहीं दे सकते है तो दुसरो को दुःख भी न दे।
आना-जाना, लगा रहेगा, दुःख जायेगा, सुख आयेगा, करेगा जो भी, भलाई के काम, उसका ही नाम, रह जायेगा…!!
क्यों घबराता हैं पगले दुःख होने से…
जीवन तो प्रारम्भ ही हुआ हैं रोने से…
मेरे दोस्तों
यही तो जीवन का सही अर्थ और मतलब है। सुख और दुख के बिना तो जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती। कभी भी जीवन में एक जैसे दिन नहीं होते कभी खुशियां होती हैं तो कभी गम होते है इसी तरह जीवन अपना चक्र पूर्ण करती है। सुख और दुख के समय ही जीवन में लोगों की असली पहचान होती है और यही चीजें हमें जीवन के कई नए पाठ पढ़ा कर जाती है। इसलिए जीवन में आए दुख से कभी निराश नहीं होना चाहिए।
असल
में इस संसार में दुःख और सुख का विषय सापेक्षिक है मतलब ये स्थिर नहीं
है।किसी एक की नौकरी लगना किसी के लिए ख़ुशी तो किसी के लिए दुःख हो सकता
है।
पर जैसे जैसे सभ्यताएं विकास करती है तो ये दुःख और सुख की परत मोटी होती जाती है।
वह दुसरे अपने साथ वाले का जीवन देखता है और दुखी होता है।
मेरा
कहना है की अगर पूरी दुनिया में सभी इंसानों की हालत एक जैसी हो जाए सबके
ऊपर मुसीबत के पहाड़ टूट पड़े।सब की रोजी रोटी तबाह हो जाए।तो हम देखेंगे की
लोगों पर दुःख का कोई नमो निशान नहीं होगा क्यूंकि वो जानते हैं की पूरी
दुनिया की अपने जैसे हाल हैं।तो क्या रोना।
इसलिए मनुष्य का सुख और दुःख दुसरे के दुःख और सुख पे निर्भर करता है।आजकल के समय में तो येही देखा जा सकता है।
सुख की इच्छा करना ही दुख है...
जब आप आये दिन सुनार के पास जाने लगे तो समझिये सुख है और जब आप भगवान को याद करे तो समझिये दु:ख है।
दुख और सुख की परिभाषाये व्यक्तिगत रूप से अलग अलग हो सकती है।
वैसे देखा जाए तो दुख और सुख में कई स्तिथियाँ है।
लेकिन जब कभी भी मुझे २-३ दिनों की छुट्टी होती है मैं बड़े आनंद से घर आता हूँ। यह मेरे बहुत ही सुखद अनुभव होता है।
फिलहाल तो मेरे लिए यही दुख और सुख है।

इसके विपरीत अपेक्षा दुःख का पर्याय है। अपेक्षा
उपेक्षा की जननी है, जो साधन उपलब्ध हैंं उनकी उपेक्षा करके अधिक की
अपेक्षा करना ..यही हमारी वृत्ति है और यही महान दुःखों का कारण है ।दुःख
संताप दे सकता है परंतु असह्य नहीं हो सकता। ये तो हम लोग ही संताप को पीडा
मे बदलकर कष्टकारी बना लेते हैं।

जन्म से अंधे व्यक्ति को हम कितना भी समझाने का प्रयास करें कि यह विश्व दृश्य स्वरूप में दिखाई देता है, तब भी उसे विश्वास दिलाना कठिन है । किसी बालक को यौन के बारे में कितना ही क्यों न समझाएं, उसके लिए यह समझना कठिन है । उसी प्रकार, आनंद का अर्थ किसी को समझाना कठिन होता है।
दोस्तों जिंदगी के कुछ ख़ास आयामों को समझने के लिए सुख और दुख का होना जीवन में बहुत ही आवश्यक है। यह इस बात को याद दिलाता है कि हम सदा के लिए रहने नहीं आए हैं हम कुछ समय के लिए यहां यात्रा कर रहे हैं। आपके जीवन में हो रही घटनाएं -चाहे वह सुख से संबंधित है या दुःख से संबंधित है आपको कुछ न कुछ सीखने को ही मिलता हैं चाहे वह अच्छा है या एक कड़वा सच। यह सब आपकी पर्सनल ग्रोथ के लिए बहुत जरूरी है।
कभी हसना है कभी रोना है
जीवन सुख दुःख का संगम है
कभी पतझड़ है कभी सावन है
यह आता जाता मौसम है
कभी हसना है कभी रोना है
जीवन सुख दुःख का संगम है
कुछ जीने की मजबूरी है
कुछ इस दुनिया की रस्मे है
कुछ दिन हैं खोने पाने के
कुछ वादे हैं कुछ कस्मे
हैं एक बेचैनी सी हर दम है
जीवन सुख दुःख का संगम है
कभी पतझड़ है कभी सावन है
यह आता जाता मौसम है
कोई सोता है आँचल के तले
कोई दिल मंटा को तरसता है
कही मायूसी की धुप खिली कही
प्यार ही प्यार बरसता है कभी
दर्द है तोह कभी मरहम है
जीवन सुख दुःख का संगम है
कभी हसना है कभी रोना है
जीवन सुख दुःख का संगम है
गुजरे हुए लम्हों की यादें
हर वक्त हमें तड़पती है
एक साया बनके आती है
एक साया बनके जाती है
एक तन्हाई का आलम है
जीवन सुख दुःख का संगम है
कभी पतझड़ है कभी सावन है
यह आता जाता मौसम है
कभी हसना है कभी रोना है
जीवन सुख दुःख का संगम है
जीवन सुख दुःख का संगम है
जीवन सुख दुःख का संगम है.
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