दोस्तों आज मै एक आलेख लिखने जा रहा हूँ , जिसका नाम है -
बच्चो से उनका बचपना न छीने
बच्चे भगवान के रुप होते है। वे देश के भविष्य हैं बाल श्रम और मोबाइल की भट्ठी में झोंक कर उनसे उनका बचपन न छीना जाए।
ये दौलत भी ले लो
ये शोहरत भी ले लो
भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी
मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन
वो कागज की कश्ती वो बारिश का पानी।

दोस्तों हमारे समाज में नौकरीपेशा माता-पिता के लिए अपने बच्चों को दिनभर व्यस्त रखना या किसी के भरोसे छोड़ना एक फायदे का सौदा होता है क्योंकि उनके पास तो अपने बच्चो के लिए समय है ही नहीं।
बच्चों में अपनेपन की भावनाएं नष्ट होती जा रही हैं। अकेलेपन और मानसिक रोगों की चपेट में सभी हैं, क्योंकि सोशल मीडिया द्वारा दूर-दराज के रिश्तेदारों और अनजान लोगों से संबंध तो सभी स्थापित करने में लगे हैं, पर जो रिश्ते पास हैं, साथ हैं उनसे दूर होते जा रहे हैं। बच्चे चिरचिरेपन हो रहे है।
दोस्तों पढनें-लिखने की उम्र में बच्चे मजदूरी करने को मजबूर है। इन बच्चों की मां-बाप ही इनको मजबूर करते हैं। किसी बच्चें का बाप शराब पीता है तो उसे घर चलाने के लिए अपनी मां के साथ काम करना पड़ता हैं। पर क्या आज कहीं खो गया है बचपन? कहां गुम हो गई हैं शरारतें? वो शोर-शराबा, मस्ती भरी हंसी जाने अब क्यों सुनाई ही नहीं देती हैं। नन्हें हाथो में अब मोबाइल-फोन ने अपनी जगह बना ली है। वो नन्हीं हंसी अब Youtube के Videos और फोन में ऑनलाइन और games ने छीन ली है।
इस बनावटी दुनिया में बच्चे भटक रहे है।
दोस्तों बचपन में बिना समझ के भी, हम कितने सच्चे थे, वो भी क्या दिन थे, जब हम बच्चे थे।कोई तो रूबरू करवाए बेखौफ बीते हुए बचपन से.. मेरा फिर से बेवजह मुस्कुराने का मन है,लेकिन ये सब अब देखने को ही नहीं मिलता है।


इस पर भी माँ-बाप उन्हें गिल्ली-डंडे, लट्टू, कैरम व बेट-बॉल की जगह मोबाइल और वीडियोगेम थमा देते हैं, जो उनके स्वभाव को ओर अधिक उग्र बना देते हैं। अक्सर यह देखा जाता है कि दिनभर मोबाइल और वीडियोगेम से चिपके रहने वाले बच्चों में सामान्य बच्चों की अपेक्षा चिड़चिड़ापन व गुस्सैल प्रवृत्ति अधिक पाई जाती है।
कम से कम इस उम्र में तो आप अपने बच्चो को खुला दें और उन्हें बचपन का पूरा लुत्फ उठाने दें।जिसका बुरा से बुरा करने को वे हरदम तैयार रहते हैं।
स्कूल में भी पढ़ाई के साथ-साथ दोस्तों के साथ मस्ती और छुट्टी की बेल बजते ही खिलखिलाते हुए स्कूल से बाहर आना।
दुनिया भर में बड़ी संख्या में बच्चे मजदूरी कर कर रहे हैं. इनका आसानी से शोषण हो सकता है. उनसे काम दबा छिपा के करवाया जाता है. वे परिवार से दूर अकेले इस शोषण का शिकार होते हैं।
स्कूलों में बच्चों पर लादे गए पाठ्यक्रम एवं होमवर्क के दबाव ने उनका शारीरिक विकास रोक दिया है। बड़ा पाठ्यक्रम और स्कूलों में मिलने वाले रोज-रोज के होमवर्क ने बच्चों का दूर कर दिया है।
छोटे-छोटे बच्चों पर भी आज प्रैशर बहुत बढ़ता जा रहा है। उनका बचपन तो मानो खो सा गया है। जिस आयु में उन्हें घर-परिवार के लाड-प्यार की आवश्यकता होती है, जो समय उनके मान-मुनव्वल करने का होता
ये बात हमेशा याद आती है कि :
ये बात हमेशा याद आती है कि :
ये दौलत भी ले लो
ये शोहरत भी ले लो
भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी
मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन
वो कागज की कश्ती वो बारिश का पानी।

दोस्तों लिखने को तो बहुत कुछ है, बस अंत में यही कहूंगा कि, बच्चों का बचपन भी दोबारा लौटकर नहीं आता है। कम से कम इस उम्र में तो आप उन्हें खुला दें और उन्हें बचपन का पूरा लुत्फ उठाने दें।
बच्चो से बचपन न छीने, वे मजदूर न बन जाये, मानव व्यापार का दानव, मानवता को न खा जाये, शोषण नाम का कलंक समाज से ख़त्म हो जाये, इंसान आजाद रहे ये बधुआ न बनने पाए, करे संकल्प आओ बंधक प्रथा को ख़त्म करने का ,
दुर्भाग्यवश अपने देश में इन्हीं बच्चों के शोषण की घटनाएँ नित्य-प्रतिदिन की बात हो गई हैं।
दोस्तों दुनिया के कई देशों में आज भी बच्चों को बचपन नसीब नहीं है।
दोस्तों दुनिया के कई देशों में आज भी बच्चों को बचपन नसीब नहीं है।
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