दोस्तों सबसे पहले एक बात को समझने की जरूरत है, अगर आज आप मुश्किल में हो तो आपने इसका बीज पहले ही बोया था।
सबसे पहले ये जानने की कोशिश रहनी चाइए की ये मुश्किल क्यों है आखिर भूतकाल में मैंने क्या ऐसा किया कि आज मै मुस्किल में हूं अब जब मुश्किल आ ही गया है तो इसका उपाय क्या है इस पर चर्चा करनी चाइए , अपने मन को शांत करें और इसके उपाय के बारे में सोचने पर बल दे और कुछ ऐसे खुद को बिज़ी रखे जैसे कोई परेशानी नहीं ऐसा करने से मुश्किल वक़्त थोड़े देर के लिए आपसे दूर होगा और आप कुछ बेहतर सोच सकते है , अब जब मुश्किल आ ही गया तो हमे अपने करीबी लोगों से बात करने की कोशिश करनी चाहिए ताकि इसका हल निकाला जा सके जैसे जैसे लोगो से आपको सलाह मिलते जाएंगी आपकी हिम्मत खुद ब खुद बढ़ते जाएगी और आपके पास इस मुश्किल वक़्त से निकलने का रास्ता नजर आने लगेगा और फिर आप हिम्मत के साथ इसका सामना करने के लिए तैयार हो जाएंगे ।
मुश्किल वक़्त में जब अपनों का साथ मिले तो ही हिम्मत रखी जा सकती है । दुख की एक आदत है वो, सुख की तरह ज्यादा देर तक नहीं टिकता।
हर लिफाफा देख कर जी क्यों नहीं घबरा जाता ,
खुशियाँ क्यों चली आती है ?
वही, वैसी ही हिम्मत होती है।
काली रात की चादर उतार कर
हर बार नया सबेरा क्यों चला आता है
वही, वैसी ही हिम्मत होती है।
हर हार के बाद भी, दोबारा हिम्मत बांधे,
धावक दौड़ने क्यों चलाआता है
वही, वैसी ही हिम्मत होती है।
हर पर्दे को देख कर जी क्यों नहीं घबरा जाता ,
खुशियाँ क्यों चली आती है
वही, वैसी ही हिम्मत होती है।
बीगड़े बेटे की माँ, भटकी बेटी का बाप,
निराश क्यों नहीं हो जाता है
वही, वैसी ही हिम्मत होती है।
पुचकार -दुलार- समझा कर,
हर बार, खुशियाँ क्यों चली आती है
वही, वैसी ही हिम्मत होती है।
बाढ़ ,सूखै की मार पर भी
किसान फिर खेत पर क्यों चला आता है
वही, वैसी ही हिम्मत होती है।
हादसों से नहीं हारताफिर उठ जाता जीवन
बस खुशियाँ चली आती है
वही, वैसी ही हिम्मत होती है।
दोस्तों सबसे पहले तो ये जानना जरूरी है कि हिम्मत टूटना क्या है,क्यों टूटती है और कब टूटती हैं
,, जब हमारी ज्ञानेंद्रियां के द्वारा मन को,मन के द्वारा मस्तिष्क को सही आंकड़े नहीं मिलते है तब हमारी कर्मेंद्रियां कर्म करने में सक्षम नहीं हो पाती है और निराशा बढ़ती जाती है । इसी को हिम्मत का टूटना कहते हैं। मेरे द्वारा।,,jजैसे हम किसी लछ्या को प्राप्त करने के लिए कोई काम करते है और एक समय ऐसा आता है कि हम अपने लच्छ्या के करीब होते है परन्तु कोई ऐसी समस्या आ जाती है कि हम उस समस्या को हल नहीं कर पाते है और धीरे धीरे निराशा बढ़ती जाती है इसी को हिम्मत टूटना कहते है।
अब हम यह समझते है कि हिम्मत टूटने का कारण क्या है। पहला कारण जब हम किसी लक्छ्या को प्राप्त करने के लिए काम करते है तब हम ना तो स्पस्ट रूप से अपने लच्छया को लिखते है और ना ही उसे प्राप्त करने की नीति ही लिखते है जिसके कारण कई छोटी छोटी गलतियां होती जाती है।जब हम लच्या के करीब पहुंचे है ये गलतियां एक बड़ी गलती का रूप ले लेती है उस समय हमारा मन उत्साहित अवस्था में होता है औरगलतियों को नहीं पकड़ पाता है और उत्साह धीरे धीरे निराशा में बदल जाता है।
दूसरा सबसे मुख्य कारण है वह है दुनिया को चलाने वाले तत्व काम, क्रोध,मद,लोभ,मोह,ईर्ष्या,द्वेष,पाखंड आदि जैसे तत्वों में फंसा होना।कई बार ऐसा होता है कि व्यक्ति को ये पता होता है कि उसे लछय प्राप्ति में बाधा लालच के कारण या क्रोध के कारण आ रही होती है परन्तु फिरभी वह लछञ को प्राप्त करने की कोशिश करता है और एक समय ऐसा आता है कि वह निराश होने लगता है उसका मन मस्तिष्क काम करना बंद कर देता है उसकी कर्मेंद्रियों के द्वारा सही काम नहीं होता है और उसकी हिम्मत टूट जाती है।
दोस्तों अब प्रश्न के उत्तर पर आते हैं। जब हमारी हिम्मत टूट रही होती है उस समय हमे तनाव बहुत होता है। मस्तिष्क का सीधा संबंध हमारे पाचन तंत्र से होता है।हमारा पाचन तंत्र खराब ना हो इसके लिए हमे फल और हल्का आहार लेना चाहिए ताकि और तनाव ना बढ़े। दूसरी बात हमे योग भी करना चाहिए । तीसरी बात हमे किसी शांत जगह पर बैठ कर उस लच्छय को लिखना चाहिए जिसको प्राप्त करने में हमारी हिम्मत टूट रही है।उसके बाद उस लच्छ्य को प्राप्त करने की विधि लिखनी चाहिए जब हम ऐसा करते है तब हमें लाछ्या को प्राप्त करने में जो भूल हो रही होती है उसका ज्ञान प्राप्त हो जाता है । एक बात का और ध्यान देना चाहिए कि कोई ऐसा व्यक्ति तो नहीं है जो काम,क्रोध,मद,लोभ,मोह,इर्ष्या आदि तत्वों में जरूरत से ज्यादा फंसा हो। जब हम ऐसा करते है तब हमे अपनी गलतियों का पता चल जाता है और मन उत्साह से भरना शुरू हो जाता है।
दूसरा जो मुख्य कारण है उसमे व्यक्ति को स्वयं पाता होता है कि हिम्मत टूटने का क्या कारण है जैसे लालच, काम भावना,क्रोध, इर्ष्या,मोह आदि। इन तत्वों का निराकरण करके हम हिम्मत टूटने से बच सकते है।
आप ये सोचें के निराश उदासी या दुख जैसी कोई चीज़ दुनिया मे होती ही नही है और वैसे ही ज़िन्दगी जियें जिस ताराह के आपको जीना पसंद है और कभी आप निराशा जैसा महसूस करें तो लंबी गहरी साँस लें और फिर अपने आप को किसी चीज़ में बिज़ी कर लें किसी अएसी चीज़ में जिसको करने से आपको बहोत सकूँन महसूस होता हो जैसे के कोई गाना सुन लें या कोई अपनी मन पसंद किताबें पढ़ लें या फिर आप डायरी लिख लें और डायरी में वो बातें लिखे जिस्से आपको निराशा महसूस होता हो और सब कुछ लिख दें जो भी आपके मन में है। और फिर आपकी निराशा दूर हो जाएगी फिर आप रिलैक्स महसूस करेंगे। आपकी निराशा हौसले में बदल जाएगी कियुकि इंसान का दिल जब तक गुबारों से भरा रहता है उसे उदासी,गुस्सा और निराशा महसूस होता है इसीलिए उसे अपने दिल से निकल दें और अपना दिल हल्का कर लें और दिमाग से सारे कचड़े बाहर फेक दें इसीलिए रोज़ाना डायरी लिखा करें दिल हल्का लगेगा।
ये सच है की ये बड़ी कठिन परस्थिति होती है।
(1) सबसे पहले तो ये देखना होता है कि आप कितने सकारत्मक विचारों के हो। जब निराशा छा जाये तो आपके सकरात्मक विचार आपको उसमें से निकाल सकते है। औए यही से हिम्मत बढ़ती है।
(2) जिस विषय में आपको निराशा मिले कुछ छण के लिए उससे ध्यान हटा कर किसी अन्य विषय की ओर ले जाये।
(3) ये सोचे की आने वाला समय और बेहतर परिस्थितियों के ले आएगा।
दोस्तों लाइफ हमेशा आसानी से नहीं गुजरती। हर दिन कोई न कोई चुनौती, कोई न कोई, संघर्ष लाइफ में आता है और आता रहेगा. ऐसा कोई नहीं हैं जिसकी लाइफ में चुनोतियाँ न हों, दुःख न हों, कठिनाई न हों, रुकावटें न हों, कोई अपनी नौकरी बचाने के लिए संघर्ष कर रहा है, कोई अपने रिश्ते बचाने के लिए संघर्ष कर रहा है और कोई नौकरी ढूंढने के लिए. सफलता और असफलता एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, जीवन में इन दोनों का खासा महत्त्व है।
जब व्यक्ति हिम्मत हार कर निराशा को स्वीकार ही कर चुका है … तो उसके लिए ईश्वर से प्रार्थना करने तथा किसी चमत्कार की प्रतीक्षा करने के अतिरिक्त अन्य कोई विकल्प शेष नही …
कहने को मैं कह सकता हु के ये कर सकता है वो कर सकता है … किन्तु अनुभवों से मैंने सीखा है निराश व्यक्ति आत्मघाती हो जाता है … वह सम्मुख खड़े उपाय को भी नकार देता है तथा केवल नकारात्मकता एवम और अधिक निराशा को ही स्वीकार करता है … तो यदि व्यक्ति निराशा को स्वीकार कर ही चुका है हिम्मत हार ही चुका है तो फिर तो ईश्वर ही कुछ कर सकता है …
अन्यथा तो सत्य ये है कि ऐसी कोई समस्या नही जिसका समाधान न हो …. समाधान तब भी होता है जब कि आपको लगता है कि नही अब नही है … बस केवल दो पग आगे पीछे घूम कर देखिए … मिल जाएगा …
जीवन में बुरा या अच्छा वक़्त हमेंशा के लिया नहीं रहता। तो ऐसे समय में समझदारी वाली बात आप यह कर सकते है की धीरज रखे।
आपने ऐसी क्या गलती की की आपको यह वक़्त देखना पड़ा उसका अवलोकन करे। अगर आपको जवाब मिले तो भी ठीक है और ना मिले तो भी ठीक है।
ऐसे वक़्त में कुछ नया करने की कोशिश करे। ऐसा करने से बहोत ज्यादा चान्सेस है की आप बुरे वक़्त से जल्दी बहार आ जाये।
ऐसे में सिर्फ और सिर्फ अपने माता पिता की राय में चलना ही एक मात्र रास्ता होता है जी
बस अपने कर्म, जिम्मेवारियां ईमानदारी से निभाते रहिए।
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